नवरात्रि पर्व, मां शक्ति की आराधना का पर्व जिसमें मां के नौ रूपों की पूजा होती है। आज चैत्र नवरात्रि की शुरुवात पर जानेंगे मां बम्लेश्वरी शक्तिपीठ के बारे में जहां पर मां साक्षात बगलामुखी रूप में अपने भक्तों को दर्शन देती है।
प्राचीन कामाख्या नगरी
धर्मनगरी डोंगरगढ़ अपने प्राचीन संस्कृति और अध्यात्म को संजोकर रखने वाला एक ऐसा शहर जहां मां शक्ति की साक्षात कृपा है। सूरज की पहली किरण मां के चरणों को स्पर्श करने आती है यहां की हवाएं भी भक्ति की सुर में गाती है। डोंगरगढ़, जिसे प्राचीन समय में कामाख्या नगरी के नाम से जाना जाता था। जो आज का डोंगरगढ़ है। “डोंगढ़” का मतलब होता है, पहाड़ और गढ़ का हो मतलब होता है ,किला यानि चारों ओर पहाड़ों से घिरा हुआ शहर।
मंदिर की कहानी
यह शहर मां शक्ति बम्लेश्वरी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। अपने 2000 वर्ष से भी अधिक पुराने इतिहास को संजोकर रखने वाले इस शहर का इतिहास मध्य प्रदेश के उज्जैन से जुड़ा है, मां बमलेश्वरी को उज्जैन के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी भी कहा जाता है। मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी स्वरूप है उन्हें मां दुर्गा का रूप माना जाता है। एक प्रचलित कहानी के अनुसार इस नगरी में राजा वीरसेन का शासन था। नि: संतान थे, संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने मां भगवती दुर्गा और शिवजी की उपासना की इसके फल स्वरूप उन्हें एक साल के अंदर ही पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई , प्रसन्न होकर राजा ने मां को आभार व्यक्त करने के लिए मां बमलेश्वरी का मंदिर बनवाया।
पहाड़ पर विराजमान है, मां बमलेश्वरी
माता रानी के दो मंदिर है। एक पहाड़ पर और एक पहाड़ के नीचे छोटी मां बमलेश्वरी विराजमान है।
1600 फीट ऊंची पहाड़ी पर माता रानी विराजमान है, भक्त 1100 सीढ़ी चढ़कर माता रानी के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। साल में दो बार चैत्र और कुंवार नवरात्रि में यहां मेले का आयोजन होता है, भक्ति मां बमलेश्वरी के मंदिर में मनोकामना ज्योति प्रचलित करते हैं। छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश विदेश से भी भक्त ज्योत प्रज्वलित करते हैं। और अपनी मनोकामना अर्जी लेकर मां के दरबार में पहुंचते हैं।