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रंगोली बनाकर भी कमा सकते हैं लाखों रुपए…

International रंगोली आर्टिस्ट – छत्तीसगढ़ के देशी कलाकार प्रमोद साहू की कहानी…

1. रंग , रंगोली और प्रमोद की कहानी क्या है?

Ans – इस कहानी की शुरुआत तो बचपन से हो गयी थी, बचपन में कला के प्रति प्रेम तो सभी बच्चों में रहता है, मुझमें भी था. मेरे जीवन में जो पड़ाव आया, गुरुओं का आशीर्वाद मिला, मौका मिला, इसी वजह से मैं अपने कहानी को एक अच्छा मंचन दे पाया.

2. सबसे पहली बार रंगोली कौन से उम्र में बनाई थी?

Ans – 1998, तब मैं लगभग 7- 8 साल का था, उसी समय मैंने पहले बार रंगोली बनाई थी.

3. बचपन की एक ऐसी कहानी जिसें आप याद करके बहुत हँसतें है.

Ans – हमारे घर जब टीवी था तब उसमें डेरी मिल्क का ऐड आता था, जिसमें एक लड़की ट्रे में बहुत सारे डेरी मिल्क ले जाया करती थी, तो जब दोपहर में माँ सोये रहती थी और पापा काम पर जाये रहते थे, तो मैं टीवी देखते देखते सोचता था की अभी टीवी को फोड़ के सभी चॉकलेट बाहर निकाल लेता हूँ, ये बात मैं जब भी सोचता हूँ तब मुझे इतनी हंसी आती है की ये क्या दिमाग लगाता था मैं.

4. हम जैसे बचपन में अपने माता पिता से किस भी चीज़ के लिए जिद करते थे, आप क्या रंगोली और कलर लेनें के लिए जिद करते थे?

Ans – हाँ, मुझे लगभग अभी 2 साल पहले मेरी माँ ने मुझे बताया की जब मैं छोटा था, तब वो हम तीनों भाई बहनों को डेढ़ रूपये दे देते थे. जिसमें से मुझे आठआना मिलता था जिसमें से मैं चारआना को रखता था और चारआना को बस खर्च करता था. तो जब मेरे पास 10 रूपये जमा हो जाते थे, तो मैं उससे आर्ट मटेरियल खरीदता था.

5. बचपन में दोस्ती यारी कैसी थी आपकी, दोस्तों के साथ घूमना फिरना कितना होता था?

Ans – नहीं, अगर मैं बोलू के मेरे जीवन में दोस्त नहीं थे. कुछ टाइम पर, कुछ कारण से साथ दिए है, ऐसा नहीं कह सकते है की हमेशा के लिए साथ खड़े है, वो मेरे से दूर हो गये या मैं उनसे दूर हो गया ये नहीं समझ आया, पर अगर आज भी मिलते है तो मैं बहुत प्रफुल्लित होकर मिलता हूँ. इसमें शायद मेरी भी गलती हो सकती है कि मैंने सिर्फ कलाकार बनने पर ध्यान दिया.

6. आप इतनी बारीकी से रंगोली बनाते है, तो ये बारीकी का काम आपने किनसे सीखा?

Ans – इतनी बारीकी का काम मैंने गूगल पर आर्टिस्ट की पेंटिग्स को देखकर उसे रंगोली में बनाने की कोशिश करता था. साथ ही मेरे पापा बढ़ई का काम करते थे तो वो एक बार में ही कील को लगाते थे, तो बचपन में मैंने उनसे ये बारीकियां सीखी, और उनसे प्रेरित हुआ.

7. आपको सफलता कब मिली, लगभग कितने साल लग गये आपको सफलता पाने में ?

Ans – सफलता तो मैंने बचपन में ही पा ली थी, क्योंकि मुझे ऐसे लगता है की सफलता का मतलब ये है कि हमें किसी चीज़ के प्रति चाह और उसके लिए कर्म किया जाये तो, उसमें सही इंसान का मार्गदर्शन हो, और हम उस चीज़ को पा ले तो वहीं सफलता है. मैंने अपने हर काम को अच्छे से किया, संघर्ष किया जिससे मुझे सफलता मिली.

8. “कलाकार” शब्द के मायने आपके लिए क्या है?

Ans- कलाकार शब्द के सही मायने ये ही की जो अपने मन की बात को लोगों तक पहुंचा सके चाहे वो डांस के माध्यम से हो, गाने के माध्यम से हो, एक्टिंग के माध्यम से हो, और मैं कहूँ तो कलाकार में एक पावर है जो अपने परिवार को अपने समाज को आगे बढ़ा सकता है, क्योंकि उनके सोचने की शक्ति काफी ज्यादा होती है.

9. जिस दिन आपको पहला अवार्ड मिलने वाला था, उस दिन माँ की ख़ुशी कितनी थी?

Ans – माँ और पापा दोनों को काफी ज्यादा ख़ुशी होती थी, मैं पांव जैसे ही छूता था वो समझ जाते थे, उनके चेहरे में एक अलग ख़ुशी आ जाती थी की कुछ – न – कुछ खुशखबरी है. और मैंने जितने भी अच्छे काम किये है वो माता – पिता के लिए किये है.

10. आपकी सफलता में माँ का काफी साथ था, आपकी “सातों” का कितना साथ मिला आपको?

Ans – मेरी शादी को लगभग 2 साल हो गये और सातों से मिले मुझे 4 साल हो गये, और मुझे लगता है की जब किसी कलाकार को वाइफ मिलती है, तो वाइफ में एक गुण होने चाहिए की वो पुरुष जो भी काम करें उसका वो पूरी तरह सपोर्ट करें. और साथ ही पुरुष में भी वो गुण होने चाहिए, की वो भी अपनी वाइफ का पूरी तरह सपोर्ट करें. और सातों का मतलब होता है, सात जन्म तक साथ देने वाली, इसलिए मैंने उनका नाम सातों रखा.

11. आप विदेश जाते है तो वहां कई देशो के लोग आते है, तो उनमें हमारा छत्तीसगढ़ किस स्थान पर है?

Ans – सभी देशों और राज्यों की अपनी एक अलग भाषा और संस्कृति होती है और जब हम यहाँ से कहीं बाहर जातें है तो हमारी पहचान पूछी जाती है, तब हम बताते है की हम इस राज्य से हैं, पर मैं चाहता हूँ कि जब भी मैं कहीं जाऊ तो लोग मुझे जान जाये की ये छत्तीसगढ़ से हैं..

12. कहते हैं की मादक पदार्थ और एक कलाकर काफी ज्यादा जुड़ें रहते है, इस बात में कितनी सच्चाई हैं?

Ans – अगर हर कलाकार नशा करता है, या एक कलाकार नशें में रहता है, तो बिल्ल्कुल मैं कलाकर नहीं हूँ. ये सब भ्रम है, की समाज में इसी नजर से देखता है की हर कलाकार नशा करता है, और आज के समय में देख लो की हर विद्यार्थी इस बात को निगेटिव में देखता है कि मेरा सीनियर अगर नशा कर रहा है तो मैं भी नशा करूंगा. पर मैं ये मानता हूँ की नशा ऐसा करो की जो आपके काम को और बेहतर बनाये, और वो नशा है ध्यान , योग, परमेश्वर से जुड़ाव ये सब पवित्र नशा है. अपनें काम को और मुझे बेहतर बनाना है तो मैं ये सब चीज़ करूंगा.

13. “छपाक” इंस्टिट्यूट की क्या कहानी है, इसका नाम आपने कैसे चुना?

Ans – 2006- 2007 की बात है, हमारे घर में कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था और मुझे उस समय नोकिया का एक फ़ोन मिला था, पर मैंने उसके लिए कवर नहीं लिया मैंने उसमें कलर स्प्लैश लगाया तो उसमें से दो इरेश होकर एक बच गया. तो हमारे मोहल्ले के बच्चे अपने हाथ में टैटू बनाकर कहते थे – अज्जू चाचा के लोगो. और ये ट्रेंड तीन से चार महीने तक चला और वो लोग एक वर्ड यूस करते थे छपाक. तो बच्चों का दिया हुआ नाम 2008 का है, उसके बाद मैंने सोचा सब इस नम्बर को कराया जाये रजिस्ट, फिर मैंने उसे गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया के थ्रू उसे रजिस्टर कराया. 2014 में हमारा छपाक आर्ट शाला ओपन हुआ.

प्रमोद जी से बातचीत वीडियो माध्यम में हुई है, आप अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक से वीडियो भी देख सकते है, और जुड़ें रहिए हमर संगवारी “रायपुर लाइव ” के साथ.

खुशबू के जोहर

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