सनातन हिंदू मान्यताओं के अनुसार सावन का महीना सबसे पवित्र माना जाता है। सावन का महीना भगवान शिव को बेहद प्रिय है।आइए जानते है, भारत के 12 ज्योतिर्लिंग के बारे में..
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
12 ज्योतिर्लिंगों में पहला सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है यह मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र में समुद्र के किनारे में स्थित है। मान्यता के अनुसार सोमनाथ मंदिर के क्षेत्र में चंद्र देव ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तप किया था चंद्र देव की तपस्या से शिवजी प्रसन्न होकर यहां प्रकट हुए थे चंद्र देव के एक नाम सोम पर ही इस मंदिर का नाम सोमनाथ पड़ा।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में कृष्ण जी ने कृष्णा नदी के किनारे पर श्रीशैल पर्वत पर बना हुआ है।मान्यता के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां देवी पार्वती के साथ शिवजी ज्योति रूप में विराजित है यहां दर्शन करने से ही अश्वमेध यज्ञ के समान पूर्ण फल मिलता है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के समीप ही शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर स्थित है। मान्यता के अनुसार ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है, रोज सुबह महाकालेश्वर मंदिर में भगवान की भस्म आरती की जाती है यहां पूजा और दर्शन करने से अंजाना भय दूर होता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
भगवान शिव से जुड़े द्वादश ज्योतिर्लिंगों में मध्य प्रदेश स्थित ओंकारेश्वर का चौथा स्थान आता है. यहां पर भगवान शिव नर्मदा नदी के किनारे ॐ के आकार वाली पहाड़ पर विराजमान हैं। भगवान भोलेनाथ तीनों लोक का भ्रमण करके प्रतिदिन इसी मंदिर में रात को सोने के लिए आते हैं. महादेव के इस चमत्कारी और रहस्यमय ज्योतिर्लिंग को लेकर यह भी मानना है कि इस पावन तीर्थ पर जल चढ़ाए बगैर व्यक्ति की सारी तीर्थ यात्राएं अधूरी मानी जाती है।ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी एक कथा के अनुसार राजा मांधाता ने एक बार भगवान शिव की कठिन तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें दर्शन देकर दो वर मांगने को कहा. जिसके बाद मांधाता ने पहले वर में उन्हें इसी स्थान पर विराजमान होने को कहा और उसके बाद कहा कि आपके नाम के साथ मेरा नाम भी जुड़ जाए. मान्यता है कि तभी से भगवान शिव यहां पर विराजमान हैं और लोग इस क्षेत्र को मांधाता के नाम से जानते हैं।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
केदारनाथ द्वादश (5 वां) ज्योतिर्लिंग है। केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह मंदिर कत्यूरी शैली में पत्थरो से बना है। द्वापर युग में महाभारत युद्ध में जीत हासिल करने के बाद पांडव अपने भाइयों की हत्या के पाप का प्राश्चित करना चाहते थे. पाप से मुक्ति पाने के लिए पांडव शिव जी को खोजते हुए हिमालय पर पहुंच गए। भगवान शिव उनसे नाराज हो गए और अंतर्ध्यान हो गए और केदार में चले गए. पांडव भी उनके पीछे चल दिए. भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने बैल का रूप ले लिया और पशुओं के झुंड में मिल गए।शिव जी को ढ़ूंढ़ने के लिए भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर लिया और अपने पैर दो पहाड़ों पर फैला दिए। यह देख अन्य जानवर भागने लगे. सभी पशु भीम के पैर से निकल गए लेकिन बैल रूपी महादेव ये देखकर पुन: अंतर्धान होने लगे तभी भीम ने उन्हें पकड़ लिया।पांडवों की भक्ति और इन प्रयासों को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए और उन्हें सभी पापों से मुक्त कर दिया. उसके बाद से ही महादेव को बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में केदारनाथ धाम में पूजा जाता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
शिव और कुंभकर्ण के बेटे भीमा से भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का गहरा संबंध है. जानते हैं भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की रोचक बातें, 12 ज्योतिर्लिंग में छठा स्थान भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का आता है.महाराष्ट्र से थोड़ी दूर सहाद्रि नामक पर्वत स्थिति भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का संबंध रावण के भाई कुंभकरण के बेटे से है।भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. यहां शिवलिंग का आकार काफी मोटा है इसलिए इसे मोटेश्वर महादेव कहा जाता है. इस मंदिर के समीप एक नदी बहती है, जिसका नाम भीमा नदी है. यह नदी आगे जाकर कृष्णा नदी में मिलती है। शिव पुराण के अनुसार यहां राक्षस भीमा और भगवान शंकर के बीच भयंकर युद्ध हुआ था. इसमें शिव के शरीर निकले पसीने की बूंद से ही भीमा रथी नदी का निर्माण हुआ है।
काशी विश्वनाथ
काशी विश्वनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. जो काशी में पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। भगवान शिव पार्वती मां के कहने पर उन्हें शादी के बाद कैलाश के लेकर काशी आ गए. काशी में आने के बाद वह विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रुप में स्थापित हो गए।बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी त्रिशूल की नोक पर बसी है। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे पवित्र है, जिन्हें ब्रह्मांड का भगवान कहा जाता है।
त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग १२ ज्योतिर्लिंग में 8 वे स्थान पर आता है। इस ज्योतिर्लिंग पास ही ब्रह्मागिरी पर्वत है इसी पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम होता है। महाराष्ट्र नासिक के गोदावरी तट पर स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग सबसे अद्भुत माना जाता है. 12 ज्योतिर्लिंग में त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग ही ऐसा धाम है जहां तीन शिवलिंग एक ही जगह विराजमान है. इस लिंग के तीन मुख हैं, जिन्हें भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक माना जाता हैं।मान्यता है कि इस क्षेत्र में गौतम ऋषि ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तप किया था उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी प्रकट हुए थे तब से ही यहां शिवजी ज्योति स्वरूप में विराजमान है।
बैद्यनाथ धाम
भगवान शिव के 10 ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक है बैद्यनाथ धाम. झारखंड के देवघर में है ।बैधनाथ देश का एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो शक्तिपीठ भी है. यहां देवी सती का हृदय गिरा था. कहते हैं कि यहां बाबा माता सती के हृदय में विराजमान है इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को हृदयपीठ भी कहा जाता है। शिवधाम में त्रिशूल लगा होता है लेकिन बैद्यनाथ मंदिर में पंचशूल लगा है. कहते हैं ये पंचशूल सुरक्षा कवच है। बैद्यनाथ मंदिर का ये पंचशूल मानव शरीर के पांच विकार काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को नाश करने का प्रतीक है।मंदिर को लेकर एक रहस्य आज भी बरकरार है कि यहां भक्त मुरादें लेकर आते हैं लेकिन शिवलिंग को स्पर्श करते ही अपनी मनोकामना भूल जाते हैं। शिवधाम में त्रिशूल लगा होता है लेकिन बैद्यनाथ मंदिर में पंचशूल लगा है. कहते हैं ये पंचशूल सुरक्षा कवच है. मान्यता है कि इसके यहां रहते हुए कभी मंदिर पर कोई आपदा नहीं आ सकती।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका धाम से 17 किलोमीटर दूर बाहरी क्षेत्र में स्थित है। नागेश्वर का अर्थ है नागों के देवता। द्वादश ज्योतिर्लिंग में 10वां स्थान नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का आता है। इस मंदिर की कहानी सुप्रिया ने शिव जी की तपस्या करके राक्षसों से खुद का बचाव और उनका नाश की प्रार्थना की. अपनी परम भक्त की रक्षा के लिए भगवान शिव दिव्य ज्योति के रूप में एक बिल से प्रकट हुए. महादेव ने राक्षसों से विनाश कर दिया. सुप्रिया ने उस ज्योतिर्लिंग का विधिवत पूजन किया और शिवजी से इसी स्थान पर स्थित होने का आग्रह किया। भगवान शिव अपने भक्त का आग्रह मान कर वहीं स्थित हो गे. इस प्रकार ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान शिव ‘नागेश्वर’ कहलाए। इस मंदिर में दर्शन करने मात्र से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी प्रकार के पापों से भी मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग
12 ज्योतिर्लिंगों में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग 11 वे स्थान पर आता है। यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम स्थान में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की कहानी के अनुसार भगवान राम ने लंका विजय की कामना से लंका जाने से पहले भगवान शिव की पूजा करना चाहते थे. तब उन्होंने इस जगह पर महादेव के शिवलिंग की स्थापना कर इसकी पूजा अर्चना की थी. भगवान राम के नाम से ही इस जगह का नाम रामेश्वरम द्वीप और मंदिर का नाम रामेश्वरम पड़ा. पुराणों के अनुसार, रावण एक ब्राह्मण था और ब्राह्मण को मारने के दोष को खत्म करने के लिए भगवान राम भगवान शिव की पूजा करना चाहते थे। लेकिन तब इस द्वीप पर कोई मंदिर नहीं था, इसलिए हनुमान जी को कैलाश पर्वत से भगवान शिव के शिवलिंग लाने के लिए कहा गया। जब हनुमान जी समय पर शिवलिंग लेकर नहीं पहुंच पाए, तब माता सीता ने समुद्र की रेत को मुट्ठी में उठाकर शिवलिंग का निर्माण किया और इसी शिवलिंग की भगवान राम ने पूजा की. हनुमान जी के द्वारा लाए गए शिवलिंग को भी यहीं पर स्थापित कर दिया गया।
घुष्मेश्वर महादेव
महाराष्ट्र का प्रसिद्ध घृष्णेश्वर या घुष्मेश्वर महादेव का मंदिर औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। घृष्णेश्वर मन्दिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगों में इसका स्थान 12 है। पौराणिक कथा के अनुसार दक्षिण दिशा में स्थिति सुधर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। दोनों ही भगवान शिव के परम भक्त थे। कई वर्षो के बाद भी उनके कोई संतान नहीं हुई। जिसके कारण सुदेहा दु:खी रहती थी। अंत में सुदेहा ने अपने पति को मनाकर उसका विवाह अपनी बहन घुष्मा से करा दिया। घुष्मा भी शिव भगवान की अनन्य भक्त थी और भगवान शिव की कृपा से उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। यद्यपि सुदेहा ने अपनी बहन से किसी प्रकार की ईष्र्या न करने का वचन दिया था परंतु ऐसा हो न सका। कुछ वर्ष बाद सुदेहा ने घुष्मा के सोते हुए पुत्र का वध करके शव को समीप के एक तालाब में फेंक दिया। सुबह हुई तो घर में कोहराम मच गया परंतु व्याकुल होते हुए भी धर्मपरायण घुष्मा ने शिव भक्ति नहीं छोड़ी। नित्य की भांति वह उसी तालाब पर गई। उसने सौ शिवलिंग बना कर उनकी पूजा की और फिर उनका विसर्जन किया।धुष्मा की भक्ति से शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। जैसे ही वह पूजा करके घर की ओर मुड़ी त्यों ही उसे अपना पुत्र खड़ा मिला।और शिव जी उसके समक्ष प्रकट हो चुके थे। अब वह त्रिशूल से सुदेहा का वध करने चले तो घुष्मा ने शिवजी से हाथ जोड़कर विनती करते हुए अपनी बहन सुदेहा का अपराध क्षमा करने को कहा। घुष्मा ने भगवान शंकर से पुन: विनती की कि यदि वह उस पर प्रसन्न हैं तो वहीं पर निवास करें। भगवान शिव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और घुष्मेश नाम से ज्योतिर्लिग के रूप में वहीं स्थापित हो गए।